
अल्मोड़ा।
बेस चिकित्सालय अल्मोड़ा में मानवता का एक मार्मिक दृश्य तब देखने को मिला जब सोमेश्वर चनौदा से आए एक गरीब मरीज और उसकी वृद्ध मां अस्पताल परिसर में अपने घर लौटने के लिए असहाय बैठे मिले। मरीज पैरालिसिस से ग्रसित है और विगत दिवस पेट दर्द की गंभीर समस्या के चलते उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उपचार के बाद चिकित्सकों ने मरीज को दोपहर में डिस्चार्ज कर दिया, लेकिन उसके सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि घर लौटने के लिए न तो साधन था और न ही किराए के लिए पैसे।
परिसर में घंटों तक मां-बेटे की इस बेबसी को देखकर वहां मौजूद लोगों के दिल पसीज गए। सूचना मिलते ही यूथ रेडक्रॉस चेयरमैन एवं नगर निगम पार्षद अमित साह ‘मोनू’ और पार्षद अभिषेक जोशी तुरंत अस्पताल पहुंचे। दोनों जनप्रतिनिधियों ने हालात को समझते हुए रेडक्रॉस के सक्रिय कार्यकर्ता मनोज सनवाल से संपर्क साधा। मनोज सनवाल ने तत्काल अपने निजी संसाधनों से वाहन की व्यवस्था की और उसे बेस चिकित्सालय भेजा। इसके बाद मरीज और उसकी मां को सुरक्षित उनके घर तक पहुंचाया गया।
इस पूरी प्रक्रिया में पार्षद अमित साह, अभिषेक जोशी और मुकेश लटवाल स्वयं मरीज को अस्पताल परिसर से गाड़ी तक ले जाने में सहयोगी बने। मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण इस कार्य की चर्चा शहरभर में रही। स्थानीय लोगों ने रेडक्रॉस टीम और पार्षदों के इस प्रयास की प्रशंसा की और कहा कि यह कार्य समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
हालांकि इस घटना ने एक गंभीर सवाल भी खड़ा कर दिया है। आखिर क्यों अस्पतालों में ऐसे मरीजों के लिए कोई सुसंगठित व्यवस्था नहीं है, जो आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं और इलाज के बाद भी अपने घर जाने की स्थिति में नहीं होते। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय प्रदेश में जहां अधिकांश गांव दूरस्थ हैं और आवागमन की सुविधाएं सीमित हैं, वहां गरीब और बीमार मरीजों के सामने यह समस्या बार-बार खड़ी होती है।
स्थानीय लोगों ने कहा कि यदि मनोज सनवाल और पार्षदों तक सूचना न पहुंचती, तो शायद मरीज को अपनी मां के साथ पूरी रात अस्पताल परिसर में ही गुजारनी पड़ती। यह केवल एक उदाहरण है, जबकि प्रतिदिन न जाने कितने गरीब मरीज ऐसे ही हालात का सामना करने को विवश होते होंगे।
समाजसेवियों का मानना है कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग को इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए। जरूरतमंद मरीजों को घर तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए अस्पताल स्तर पर “मरीज सहायता कोष” या परिवहन सुविधा की स्थायी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। तभी वास्तव में स्वास्थ्य सेवाएं गरीब और असहाय लोगों तक प्रभावी रूप से पहुंच पाएंगी।
मानवता की मिसाल बने इस प्रयास ने जहां एक ओर गरीब परिवार की आंखों में राहत के आंसू ला दिए, वहीं दूसरी ओर सरकारी तंत्र की लापरवाही और व्यवस्थागत खामियों को भी उजागर कर दिया। सवाल यह है कि जब तक ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर नीति स्तर पर गंभीरता नहीं दिखाई जाती, तब तक आम आदमी का भरोसा व्यवस्था पर कैसे कायम रहेगा?
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👉 यह घटना न केवल मानवीयता का एक अद्भुत उदाहरण है, बल्कि समाज और सरकार दोनों के लिए एक सीख भी है कि असहायों की मदद के लिए ठोस और स्थायी व्यवस्था अनिवार्य है।




