
स्थायी लोक अदालत अल्मोड़ा : सस्ता, त्वरित और सुलभ न्याय की दिशा में पहल
अल्मोड़ा।
राज्य सरकार ने विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 22 (बी) के तहत स्थायी लोक अदालत का गठन अल्मोड़ा में किया है, जिसमें पिथौरागढ़ एवं बागेश्वर जिले भी सम्मिलित रहेंगे। इसका उद्देश्य है – “न्याय हुआ कितना आसान, तुरन्त समस्या का समाधान”—जिसके तहत आम जनता, वादकारियों, अधिवक्ताओं एवं जन सामान्य को शीघ्र, सस्ता और सुलभ न्याय उपलब्ध कराया जाएगा।
स्थायी लोक अदालत के प्रमुख लाभ
कोई भी व्यक्ति अदालती मुकदमेबाजी से पहले सीधे प्रार्थना पत्र देकर न्याय प्राप्त कर सकता है।
यहाँ किसी प्रकार की फीस या न्याय शुल्क नहीं लिया जाएगा।
कम समय में विवाद का निस्तारण होगा।
मुकदमेबाजी जैसी कड़वाहट या शत्रुता का भाव उत्पन्न नहीं होगा।
स्थायी लोक अदालत का निर्णय अंतिम होगा, जिस पर किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती।
कौन-कौन से मामले आते हैं स्थायी लोक अदालत के अंतर्गत?
जन-उपयोगी सेवाओं से जुड़े दीवानी एवं शमनीय आपराधिक मामले, जिनका विवाद मूल्य एक करोड़ रुपये तक हो और जो किसी अन्य न्यायालय में लंबित न हों। इनमें परिवहन (सड़क, रेल, जल, वायु), डाक एवं दूरसंचार, विद्युत, जलापूर्ति, स्वच्छता, अस्पताल-औषधालय, बीमा, शैक्षणिक संस्थान, आवास-भू-संपदा, बैंकिंग एवं वित्तीय सेवाओं से जुड़े विवाद शामिल हैं।
उपभोक्ता फोरम व स्थायी लोक अदालत में अंतर
उपभोक्ता फोरम केवल “सेवा में कमी” से जुड़े मामलों की सुनवाई करता है और उसके आदेश के विरुद्ध अपील की जा सकती है। जबकि स्थायी लोक अदालत सेवा में कमी के अतिरिक्त जन उपयोगी सेवाओं से जुड़े दावे, धन वसूली और शमनीय आपराधिक मामलों की सुनवाई करती है। इसके निर्णय पर कोई अपील नहीं होती और यह आदेश दोनों पक्षों पर बाध्यकारी होता है।
लोक अदालत और स्थायी लोक अदालत में अंतर
जहां लोक अदालत केवल समझौते पर आधारित निस्तारण कर सकती है, वहीं स्थायी लोक अदालत समझौता न होने पर भी गुण-दोष के आधार पर स्वयं निर्णय करने का अधिकार रखती है।
अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें-
अध्यक्ष, स्थायी लोक अदालत, जिला न्यायालय परिषद अल्मोड़ा
सदस्यगण :
कुमारी अभिलाषा तिवारी
भास्कर चंद्र पांडेय
अध्यक्ष : श्रीकांत पांडेय, जिला एवं सत्र न्यायाधीश





