
मुख्य वक्ता डॉ. देव सिंह पोखरिया ने कहा—हिन्दी है वैज्ञानिक अनुसंधान और विकास की मजबूत कड़ी
अल्मोड़ा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद–विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा में 11 दिसम्बर 2025 को “विकसित भारत में हिन्दी का योगदान” विषय पर एक दिवसीय हिन्दी कार्यशाला का आयोजन उत्साहपूर्ण वातावरण में किया गया। संस्थान के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में वैज्ञानिकों, अधिकारियों और कर्मचारियों ने बड़े उत्साह के साथ सहभागिता की।
कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम और परिषद गीत के साथ हुई, जिससे कार्यशाला का वातावरण गरिमामय हो उठा। इसके बाद वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रमेश सिंह पाल ने मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता डॉ. देव सिंह पोखरिया, संस्थान के निदेशक डॉ. लक्ष्मी कान्त सहित विभागाध्यक्षों और सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया।
मुख्य वक्ता डॉ. देव सिंह पोखरिया ने “विकसित भारत में हिन्दी का योगदान” विषय पर सारगर्भित और प्रेरक व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि विकसित भारत के संकल्प को साकार करने में हिन्दी की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हिन्दी न केवल जन–जन को जोड़ने वाली भाषा है, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान, प्रशासन, तकनीक और नवाचार को सरल भाषा में आमजन तक पहुँचाने का सबसे प्रभावी माध्यम भी है।
उन्होंने कहा कि कृषक भारत की रीढ़ हैं, और कृषि संबंधी शोध कार्यों को उनकी भाषा—हिन्दी में प्रस्तुत करना ही उन्हें वास्तविक रूप से लाभान्वित कर सकता है। विकसित भारत 2047 के लक्ष्य में किसान, वैज्ञानिक, युवा और महिलाएँ चार महत्वपूर्ण आधार हैं, जिनके सहयोग से ही यह संकल्प पूर्ण होगा।
डॉ. पोखरिया ने बताया कि भारत की प्रगति में व्यापक भागीदारी तब तक संभव नहीं जब तक कार्यप्रणाली में हिन्दी और भारतीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा नहीं दिया जाता। वैज्ञानिक अनुसंधान, कृषि विस्तार सेवाओं एवं तकनीकी ज्ञान को किसानों तक पहुँचाने में हिन्दी सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दी का योगदान केवल भाषाई नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, बौद्धिक और सामाजिक एकता के दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
इस अवसर पर संस्थान के निदेशक डॉ. लक्ष्मी कान्त ने कहा कि हिन्दी कार्यशालाओं का उद्देश्य राजभाषा हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देना, वैज्ञानिक संचार को सुदृढ़ करना और प्रशासनिक कार्यप्रणाली को अधिक प्रभावी बनाना है। उन्होंने कहा कि हिन्दी ऐसी भाषा है, जो अनेक भाषाओं के शब्दों को सहजता से आत्मसात कर लेती है और संचार को अधिक गतिशील बनाती है।
डॉ. कान्त ने कहा कि वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली पर अभी और गंभीर कार्य की आवश्यकता है। सरल और सुगम अनुवाद को बढ़ावा देकर हिन्दी को शोध लेखन, प्रशासनिक कार्यों और वैज्ञानिक संवाद की मुख्य धारा में लाना समय की मांग है। उन्होंने प्रतिभागियों को प्रेरित किया कि वे दैनिक व्यवहार से लेकर वैज्ञानिक लेखन तक हिन्दी के उपयोग को मजबूती दें।
कार्यक्रम में संस्थान के सभी विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक, अधिकारी, तकनीकी एवं प्रशासनिक कार्मिक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। कार्यशाला का संचालन मुख्य तकनीकी अधिकारी एवं प्रभारी राजभाषा रेनू सनवाल ने कुशलतापूर्वक किया।
अंत में राजभाषा समिति की सदस्या एवं वैज्ञानिक डॉ. प्रियंका खाती ने सभी के प्रति आभार व्यक्त कर कार्यशाला का सफल समापन किया।




