
अल्मोड़ा। आस्था, परंपरा और लोकसंस्कृति के प्रतीक ऐतिहासिक माँ नन्दा देवी मेले में शनिवार को कदली वृक्षों का नगर में भव्य आगमन हुआ। माँ नन्दा सुनन्दा के जयकारों, ढोल-दमाऊं की थाप और श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच जब दुलागांव से कदली वृक्ष शोभायात्रा के रूप में नगर पहुँचे, तो पूरे वातावरण में अद्भुत श्रद्धा और उल्लास का संगम देखने को मिला।
नन्दा देवी मंदिर परिसर पहुँचने से पहले शोभायात्रा नगर के प्रमुख मार्गों से गुज़री। इसी दौरान प्रांतीय उद्योग नगर व्यापार मंडल अल्मोड़ा ने यात्रा का भव्य स्वागत किया। व्यापार मंडल की ओर से श्रद्धालुओं के लिए जलपान की विशेष व्यवस्था की गई। जगह-जगह श्रद्धालुओं को पानी, शीतल पेय और हल्का प्रसाद वितरित किया गया। इस अवसर पर नगरवासियों ने दीप प्रज्वलित कर और फूल बरसाकर माँ के स्वरूप माने जाने वाले कदली वृक्षों का अभिनंदन किया।
व्यापार मंडल अध्यक्ष अजय वर्मा ने कहा कि यह उनके लिए सौभाग्य की बात है कि उन्हें माँ की यात्रा में सेवा का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि नन्दा देवी महोत्सव केवल धार्मिक आस्था का नहीं, बल्कि सामाजिक एकजुटता और लोकसंस्कृति के संरक्षण का भी प्रतीक है। “माँ नन्दा की यात्रा में सेवा करना जीवन का सबसे बड़ा पुण्य है,” उन्होंने कहा।
इस अवसर पर व्यापार मंडल के जिला अध्यक्ष सुशील शाह, महामंत्री भैरव गोस्वामी, नगर अध्यक्ष अजय वर्मा, नगर महामंत्री वाकुल साह, वरिष्ठ उपाध्यक्ष मुकेश जोशी, दीपक वर्मा, मनोज वर्मा, कांची धीरज शाह, पंकज वर्मा, हर्षू वर्मा, राजा पांडे, कन्नू वर्मा समेत बड़ी संख्या में पदाधिकारी एवं व्यापारी मौजूद रहे। सभी ने एक स्वर में कहा कि माँ नन्दा देवी महोत्सव अल्मोड़ा की पहचान है और व्यापार मंडल हर वर्ष इस महोत्सव में अपनी सहभागिता निभाता रहा है।
श्रद्धालुओं ने बताया कि कदली वृक्षों का इस महोत्सव में विशेष महत्व है। इन्हीं वृक्षों से माँ की प्रतिमाएं तैयार की जाती हैं और विसर्जन तक इन्हें माँ की जीवंत उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि वृक्षों के नगर में आगमन को भक्त सबसे पवित्र क्षण मानते हैं।
पूरे नगर में इस दौरान भक्तिमय वातावरण देखने को मिला। ढोल-दमाऊं की गूंज, लोकगायक मंडलियों के भजन और श्रद्धालु महिलाओं द्वारा गाए गए मंगल गीतों ने शोभायात्रा को और भी भव्य बना दिया। हर गली-चौराहे पर श्रद्धालु हाथ जोड़कर माँ के स्वरूप का स्वागत करते दिखे।
मंदिर परिसर पहुँचने के बाद विशेष पूजा-अर्चना संपन्न हुई और देर शाम तक श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़ते रहे। नगर में भारी भीड़ के बावजूद शांति और अनुशासन का विशेष उदाहरण देखने को मिला।
कुमाऊँ की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा के इस ऐतिहासिक महोत्सव को स्थानीय लोग ही नहीं, बल्कि दूर-दराज़ से आए श्रद्धालु भी बड़ी आस्था से देखते हैं। कदली वृक्षों का आगमन इस महोत्सव का प्रमुख आकर्षण है और इसका इंतजार श्रद्धालु पूरे वर्ष करते हैं।





