
अल्मोड़ा।
माध्यमिक शिक्षा विभाग में लंबे समय से लंबित प्रमोशन को लेकर शिक्षकों में गहरी नाराजगी व्याप्त है। एल.टी. से प्रवक्ता पदों तथा प्रवक्ता से प्रधानाचार्य पदों पर पदोन्नति की प्रक्रिया विगत सात वर्षों से ठप पड़ी हुई है। इस वजह से न केवल शिक्षकों का मनोबल गिरा है बल्कि शैक्षिक व्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
शिक्षक संगठनों ने सरकार से मांग की है कि एल.टी. से प्रवक्ता पदों पर शीघ्रातिशीघ्र पदोन्नति दी जाए। इसके साथ ही प्रधानाचार्य पदों को भी शत-प्रतिशत पदोन्नति से भरे जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। संगठनों का कहना है कि यदि शिक्षकों को उनकी योग्यतानुसार समय पर पदोन्नति नहीं मिलती है तो शिक्षा व्यवस्था का भविष्य अंधकारमय हो सकता है।
शिक्षक नेताओं ने बताया कि पिछले सात वर्षों से माध्यमिक शिक्षा में किसी भी स्तर पर प्रमोशन प्रक्रिया पूरी नहीं की गई है। इससे हजारों शिक्षक अपने हक से वंचित हैं। वहीं, कई विद्यालयों में प्रधानाचार्य पद रिक्त पड़े हैं जिससे प्रशासनिक कार्यों में कठिनाई आ रही है। विद्यालयों के संचालन में अव्यवस्था फैल रही है और छात्र-छात्राओं की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
वर्तमान में स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि माध्यमिक शिक्षक चॉक-डाउन हड़ताल पर उतर आए हैं। उन्होंने स्पष्ट चेतावनी दी है कि जब तक पदोन्नति प्रक्रिया प्रारम्भ नहीं की जाती, आंदोलन जारी रहेगा। शिक्षकों का कहना है कि सरकार केवल आश्वासन देती रही है लेकिन जमीनी स्तर पर अब तक कोई कदम नहीं उठाए गए हैं।
शिक्षकों की इस हड़ताल को अब अभिभावकों का भी समर्थन मिलने लगा है। अभिभावकों का कहना है कि यदि शिक्षकों को समय पर उनका हक मिलेगा तो निश्चित ही वे और अधिक समर्पण के साथ पढ़ाई पर ध्यान देंगे। यही कारण है कि अब आमजन भी इस आंदोलन को सही ठहराने लगे हैं।
संगठन के पदाधिकारियों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने शीघ्र कोई ठोस निर्णय नहीं लिया तो आंदोलन को और उग्र किया जाएगा। उन्होंने कहा कि एल.टी. से प्रवक्ता और प्रवक्ता से प्रधानाचार्य पदों पर प्रमोशन रोके रखना शिक्षा प्रणाली के साथ अन्याय है। यह न केवल शिक्षकों की वरिष्ठता और मेहनत की अनदेखी है बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता को भी प्रभावित करने वाला कदम है।
इस मुद्दे पर शिक्षाविदों का भी कहना है कि पदोन्नति रोकने से एक ओर शिक्षकों में निराशा बढ़ रही है और दूसरी ओर योग्य शिक्षक अपने अधिकार से वंचित हो रहे हैं। इससे शिक्षण का स्तर लगातार गिरता जा रहा है।
अब देखना यह होगा कि सरकार शिक्षकों की इस जायज मांग पर कब और कितना गंभीरता से विचार करती है। यदि जल्द समाधान नहीं हुआ तो राज्य की माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा संकट मंडरा सकता है।





